पहले मिर्ज़ा गालिब :-
*“उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां में ‘गालिब’*
*जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे…”*
*जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे…”*
शायर इकबाल का उत्तर :-
*“ना रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी परिंदे से* …
*जब पर निकल आते हैं*
*तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं…”*
*जब पर निकल आते हैं*
*तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं…”*
आज पूँजीवाद में जहाँ पुराने ज़माने के रागात्मक सम्बन्ध को मुद्रा की सत्ता ने पैसे-पैसे के निकृष्टम स्वार्थो के सम्बन्ध में बदल दिया है, इकबाल का शायर इसी को दर्शाता है।
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