नागरिक प्रगतिशील साहित्य

Tuesday, June 15, 2021

मेरे जूते को बचाकर रखना - गाज़ा नरसंहार पर एक मार्मिक कविता गाज़ा में

›
  गाज़ा में इज़रायली बमबारी से ढाये जा रहे क़हर की सबसे ह्रदय विदारक तस्‍वीरों में एक बच्‍चे के खून से सने जूते की तस्‍वीर भी थी जो शायद बमब...

जीना - नाज़िम हिकमत की कविता

›
  जीना कोई हँसी-मजाक की चीज़ नहीं, तुम्‍हें इसे संजीदगी से लेना चाहिए। इतना अधिक और इस हद तक कि, जैसे मिसाल के तौर पर, जब तुम्‍हारे हाथ बँधे...

विजयी लोग - पाब्‍लो नेरूदा की कविता

›
  मैं दिल से इस संघर्ष के साथ हूँ मेरे लोग जीतेंगे एक-एक कर सारे लोग जीतेंगे इन दु:खों को रूमाल की तरह तब-तक निचोड़ा जाता रहेगा जब-तक कि सार...

अल सल्‍वाडोर के क्रान्तिकारी कवि रोके दाल्‍तोन की कविता - तुम्‍हारी तरह

›
  मैं भी प्यार करता हूँ  प्यार से, ज़‍िन्दगी से,  चीज़ों की भीनी-भीनी खुशबू से,  जनवरी के दिनों के आसमानी भूदृश्‍यों से।  मेरा ख़ून भी खौलता...

हबीब जालिब की नज़्म “कॉफ़ी-हाउस”

›
  दिन-भर कॉफ़ी-हाउस में बैठे कुछ दुबले-पतले नक़्क़ाद* बहस यही करते रहते हैं सुस्त अदब की है रफ़्तार सिर्फ़ अदब के ग़म में ग़लताँ* चलने फिरने...

बड़ी-बड़ी कोठिया सजाए पूँजीपतिया

›
  बड़ी-बड़ी कोठिया सजाए पूँजीपतिया कि दुखिया के रोटिया चोराए-चोराए अपने महलिया में करे उजियरवा कि बिजरी के रडवा जराए-जराए कत्तो बने भिटवा कत...
Thursday, May 21, 2020

'यात्रा जो अभी पूरी नहीं हुई -जुल्मी राम सिंह यादव

›
      यदि वसुधैव कुटुंबकम कोई  दोगला शब्द नहीं तो जरा खोज कर बताना मेरी भूख और पांवों के छालों के लिए  तुम्हारी वर्णमाला में कोई अक्ष...
›
Home
View web version
Powered by Blogger.