Tuesday, May 12, 2020

बिखरता , टूटता संसार लेकर



दिलों में  दुखों का  अंबार लेकर
बिखरता ,  टूटता  संसार  लेकर ।

निकलने को हुए मज़बूर फिर से
भटकती  ज़िन्दगी  दुश्वार लेकर ।

बहुत आसाँ है ,मेरी छत का प्लास्टिक
उड़ा  दे , छोटी  एक  बयार लेकर ।

पुरानी ज़िंदगी अब क्या बुनेंगे
साँसों के धागे, तार - तार  लेकर  !

सफ़र में चल पड़े तो चल पड़े हम
बाल- बच्चे सहित , परिवार लेकर ।

ये कैसे लोग सर पर चढ़ गए हैं
नए भगवानों  का  अवतार लेकर !

सिर्फ़ मक्कारी और झूठ-धोखा
करें क्या ऐसी हम सरकार लेकर !

हमें मालूम है , बहलाएगा फिर
नया जुमला,फिर एक बार लेकर ।

जागोsss...! और जगाए रक्खो
आँखों  में  सपने  बेकरार  लेकर ।

ग़ज़ल  की  नई  है  ज़मीन  यारो
'कमल' गाओ नए अशआर लेकर ।

            ----  आदित्य कमल

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