दिलों में दुखों का अंबार लेकर
बिखरता , टूटता संसार लेकर ।
निकलने को हुए मज़बूर फिर से
भटकती ज़िन्दगी दुश्वार लेकर ।
बहुत आसाँ है ,मेरी छत का प्लास्टिक
उड़ा दे , छोटी एक बयार लेकर ।
पुरानी ज़िंदगी अब क्या बुनेंगे
साँसों के धागे, तार - तार लेकर !
सफ़र में चल पड़े तो चल पड़े हम
बाल- बच्चे सहित , परिवार लेकर ।
ये कैसे लोग सर पर चढ़ गए हैं
नए भगवानों का अवतार लेकर !
सिर्फ़ मक्कारी और झूठ-धोखा
करें क्या ऐसी हम सरकार लेकर !
हमें मालूम है , बहलाएगा फिर
नया जुमला,फिर एक बार लेकर ।
जागोsss...! और जगाए रक्खो
आँखों में सपने बेकरार लेकर ।
ग़ज़ल की नई है ज़मीन यारो
'कमल' गाओ नए अशआर लेकर ।
---- आदित्य कमल
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