किस देश जा रहे हो तुम,
बैगों में भर भूख की थैलियां,
हांथों से पोछते, माथे की दरकती लकीरें,
अपने पैरों से घुमाते,
जिंदगी के कठोर ठंडे पेडल,
बोल साथी, किस देश जा रहे हो तुम।
किस देश जा रही हो तुम,
गोद में भर अपने बच्चों का भविष्य, भूत, वर्तमान,
मुठ्ठी में भर कर कुछ बचे - बसाए अरमान,
लाचारी के बैक सीट पर बैठ कर
किस देश जा रही हो साथी।
कहां है तुम्हारा देश नक्शे पर?
तुम्हारी राष्ट्रीयता क्या है भला?
तुमने आज तक इनके मकान, कारखाने, ऑफिस, स्कूल, यूनिवर्सिटी, अस्पताल और सड़क बनाए हैं,
तुमने ही बनाए हैं,
इनके आराम कमरे,
जहां लेट आज
देख रहा है समाज तुम्हारा तमाशा,
"ब्रेड" को असंवेदनशील दातों से दबाते हुए।
और बनाया है तुम्हींने इनका देश,
जिसपे यह दंभ भरते हैं, राष्ट्रवाद का।
कब तक ढूंढोगे साथी,
तुम अपना देश, शहर, गांव, घर....?
कब तक यूं ही अरामखोर विद्वानों के फलसफे सुनते रहोगे तुम?
अब वक़्त है,
लड़ लो तुम,
ख़ुद गढ़ लो तुम,
एक नया समाज, अपने लिए।
तिजु भगत
#LockdownMassacres
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