"मैं एक 'कश्मीरी' हूँ।
टोपी उतार दूँ तो मज़हब बदलेगा मेरा लेकिन तकदीर नहीं,
अपने घर में मारा गया हूँ, अपने घर से ही बाहर निकाला गया हूँ।
अपनों को मरते देखा है और उनकी याद में खुदको भी तड़पते देखा है,
इस जन्नत में पैदा होकर भी 'इंसानियत', 'जमूरियत' और मेरी इस 'कश्मीरियत' को नरक बनते देखा है।"
टोपी उतार दूँ तो मज़हब बदलेगा मेरा लेकिन तकदीर नहीं,
अपने घर में मारा गया हूँ, अपने घर से ही बाहर निकाला गया हूँ।
अपनों को मरते देखा है और उनकी याद में खुदको भी तड़पते देखा है,
इस जन्नत में पैदा होकर भी 'इंसानियत', 'जमूरियत' और मेरी इस 'कश्मीरियत' को नरक बनते देखा है।"
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