Sunday, May 17, 2020

गर लौट सका तो

*गर लौट सका तो जरूर लौटूंगा,*
*तेरा शहर बसाने को।*

*पर आज मत रोको मुझको,* *बस मुझे अब जाने दो।।*

*मैं खुद जलता था*
*तेरे कारखाने की भट्टियां जलाने को,*

मैं तपता था*
*धूप में तेरी अट्टालिकायें बनाने को।*

*मैंने अंधेरे में खुद को रखा,*
*तेरा चिराग जलाने को।*

*मैंने हर जुल्म सहे*
*भारत को आत्मनिर्भर बनाने को।*

*मैं टूट गया हूँ समाज की बंदिशों से।*
*मैं बिखर गया हूँ जीवन की दुश्वारियों से।*

*मैंने भी एक सपना देखा था*
 *भर पेट खाना खाने को।*

*पर पानी भी नसीब नहीं हुआ*
*दो बूंद आँसूं बहाने को।*

*मुझे भी दुःख में मेरी माटी बुलाती है।*
*मेरे भी बूढ़े माँ-बाप मेरी राह देखते हैं।*

*मुझे भी अपनी माटी का कर्ज़ चुकाना है।*
*मुझे मां-बाप को वृद्धाश्रम नहीं पहुंचाना है।*

*मैं नाप लूंगा सौ योजन पांव के छालों पर।*
*मैं चल लूंगा मुन्ना को  रखकर कांधों पर।*

*पर अब मैं नहीं रुकूँगा*
*जेठ के तपते सूरज में।*

*मैं चल पड़ा हूँ अपनी मंज़िल की ओर।*

*गर मिट गया अपने गाँव की मिट्टी में*
*तो खुशनसीब समझूंगा।*

*औऱ गर लौट सका तो जरूर लौटूंगा,*
*तेरा शहर बसाने को।*

*पर आज मत रोको मुझको, बस मुझे अब जाने दो।।*

*भारत की पलायन करती अर्थव्यवस्था*
*यानी मज़दूरों को सादर समर्पित...!*

 विनय कुमार

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