Sunday, January 22, 2017

इंक़लाब की ये मुट्ठियाँ

इंक़लाब की ये मुट्ठियाँ
जुल्म के खिलाफ उठी ये मुट्ठियाँ,
जी करता है तेरा हाथ चूम लूं।

कामरेड, तू मेरे दिल के करीब है,
कामरेड, तू मुझे बहुत अजीज है।
तेरी आवाज़ में इंक़लाब का शोर है,
तेरी आँखों में जलता हुंकार का नूर है।

तेरे क़दमों की आहट से कांपती हुकूमत,
तेरी साँसों में उठता बग़ावत का सूर है।
हाथों में छाले, दिल में शोले,
रास्ते कठिन, मगर हौसले बोले।

जो रोटी छीने, जो हक़ दबाए,
उनके ख़िलाफ़ ये जंग ना रुक पाए।
मज़दूर के पसीने का हिसाब होगा,
हर मेहनतकश का जवाब होगा।

इंक़लाब की चिंगारी शोला बनेगी,
पूंजी की हर सल्तनत ढहने लगेगी।
आ, साथ चलें, ये सौगंध खाएँ,
ज़ुल्म का हर किला ध्वस्त कर जाएँ।

कामरेड, ये जंग हमारी ज़िंदगी है,
कामरेड, तेरी दोस्ती ही बंदगी है!
एम के आज़ाद

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