Sunday, January 22, 2017

एलान / गोरख पाण्डेय

 फावड़ा उठाते हैं हम तो
मिट्टी सोना बन जाती है
हम छेनी और हथौड़े से
कुछ ऎसा जादू करते हैं
पानी बिजली हो जाता है
बिजली से हवा-रोशनी
औ' दूरी पर काबू करते हैं
हमने औज़ार उठाए तो
इंसान उठा
झुक गए पहाड़
हमारे क़दमों के आगे
हमने आज़ादी की बुनियाद रखी
हम चाहें तो बंदूक भी उठा सकते हैं
बंदूक कि जो है
एक और औज़ार
मगर जिससे तुमने
आज़ादी छीनी है सबकी
हम नालिश नहीं
फ़ैसला करते हैं ।
(रचनाकाल : 1980) ----- जनकवि गोरख पाण्डेय

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