।।उनकी देश भक्ति।।
जन को मारकर जनतंत्र को प्रणाम करना
यह मां को मारकर बाप को सलाम करना है
देशभक्ति नहीं
फिर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
कि ये कत्लगाहें किसी राष्ट्र ध्वज की बेबस परछाइयों के नीचे खड़ी हैं
या किसी सुमधुर राष्ट्रगान की
अदृश्य सिसकियो के बीच
उनका देश
चंद कागज के टुकड़ों पर स्याह रेखाओं में कैद
बनते बिगड़ते एक नक्शे से चलकर
कुछ गज कपड़ों के स्पंदन हीन झंडों में खो जाता है परंतु मेरा यह देश कोटि कोटि खुश्क आंसुओं का
एक लय में लिपटकर
इंसानी खुशबू से महकते
फूलों की घाटियों में बदल दिया जाने का
खुली आंखों से देखे गए
जिंदा सपनों का सच है
उनके लिए भारत माता शब्दों का एक शिकारगाह है जिसमें ध्वनि तो है लेकिन अर्थ नहीं
जिसके चारों अंधेरे बुर्ज पर मृगमरीचिका
धर्म के नाम पे अधर्म की नंगी तलवार लिए खड़ी है और आतुर है यह देखने के लिए
कि कब मां का एक पुत्र
बारूद में बदलकर दूसरे के सीने में उतर जाता है
देश सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा भर नहीं होता
जो राजा के दौड़ते घोड़ों के टापो से जन्म लेता है
देश लाखों लाख दिलों को अपनी छाती से लगाए
एक जीवित देह होता है
तब भी क्या यह कहने को शेष रह जाता है
कि लहूलुहान दिल के
मृत्यु की नदी में डूब जाने पर
देश जो कि एक जिंदा देह है
उसे लाश बनकर नदी में उतराने से
रोका नहीं जा सकता
इसलिए एक छोटे से भी दिल को
तोड़ देने का मतलब होता है
उतने ही एक छोटे से हिस्से को
हमेशा हमेशा के लिए देश के नक्शे से मिटा देना उनके लिए किसान एक देश नहीं है
वह सिर्फ अन्न और सैनिकों की पौध तैयार करने वाली
किराये की एक सरोगेसी कोख है
जिसे प्रसव के बाद देश के नक्शे में जगह पाने के लिए दो पैरों की नहीं एक रस्सी के फंदे की जरुरत पड़ती है वर्णवाद के कोढ़ से बजबजाती जिस मूर्ति पर तुम राष्ट्रवाद का सुगंधित केसरिया टीका मलकर
उसकी प्राण प्रतिष्ठा करने की कोशिश कर रहे हो इससे उसमें देवत्व का वरण नहीं
दुर्गंध का ही वरण होगा
जब जब धनासुर बकासुर का मुकुट पहनकर धरतीपुत्रों का गर्दन मरोड़ रहा होता है
तब उनके पिलाए छठी के दूध का
कर्ज उतारने के लिए
हे डफालिये तुम उसके ड्योढ़ी पर
झूठी देशभक्ति की मोटी चमड़ी से बनी अपनी डफली और जोर जोर से बजाना शुरु कर देते हो
ताकि उनकी चीख कहीं बाहर निकल कर
जनता के दुश्मनों की गले की तलवार ना बन जाए जंगे आजादी में
जब भारत माता की जय कहने का मतलब
दुश्मनों की गोलियों में
अपने नाम का अंतिम शब्द लिखना होता था
उस समय वे अपनी देसी उॅगलियों से
अंग्रेजी चिलम में जाफरानी खुशबू भर रहे थे
और अब सत्ता की पंजीरी लूटने के लिए
भारत माता के नाम पर
दहशतगर्दी का नया तालिबानी हथियार गढ़ रहे हैं समानता के विरुद्ध समरसता का नकली दूध पिलाने वाले स्वदेशी मिलावटखोर
भगत सिंह के न्याय एवं समानता के विचारों की हत्या कर
शहीद-ए-आजम को भी बुद्ध की तरह
विष्णु का पच्चीसवा अवतार बता कर
अपने हाथों की गढ़ी हुई निर्जीव मूर्तियों में
तब्दील कर देना चाहते हैं
धान के खेतों में पानी में गड़ी
वह जो मांग में सिंदूर की जगह
अपनी भूख को पहने धरती को सुहागिन बना रही है वह कुम्हार जो मिट्टी में पानी की जगह
अपनी देह का सूरज गूॅथ कर
रोशनी के दिए गढ़ रहा है
वह किसान जो जुए के दाएं हिस्से में
बैल और ईश्वर की अनुपस्थिति की परवाह किए बिना बाएं हिस्से को अकेले ही खींच कर
पसीने का रक्तबीज बो रहा है
माटी के माधव तो उनसे माटी की महक मत पूछ
देश भक्ति की बात ना कर
देशभक्ति का मतलब होता है संपूर्ण जनता का
सम्मान एवं समानता हक और न्याय
न कि दम घुटती हवा में तैरती
नपुंसक मिथ्या मैथुन की कल्पकथा
यह मां को मारकर बाप को सलाम करना है
देशभक्ति नहीं
फिर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
कि ये कत्लगाहें किसी राष्ट्र ध्वज की बेबस परछाइयों के नीचे खड़ी हैं
या किसी सुमधुर राष्ट्रगान की
अदृश्य सिसकियो के बीच
उनका देश
चंद कागज के टुकड़ों पर स्याह रेखाओं में कैद
बनते बिगड़ते एक नक्शे से चलकर
कुछ गज कपड़ों के स्पंदन हीन झंडों में खो जाता है परंतु मेरा यह देश कोटि कोटि खुश्क आंसुओं का
एक लय में लिपटकर
इंसानी खुशबू से महकते
फूलों की घाटियों में बदल दिया जाने का
खुली आंखों से देखे गए
जिंदा सपनों का सच है
उनके लिए भारत माता शब्दों का एक शिकारगाह है जिसमें ध्वनि तो है लेकिन अर्थ नहीं
जिसके चारों अंधेरे बुर्ज पर मृगमरीचिका
धर्म के नाम पे अधर्म की नंगी तलवार लिए खड़ी है और आतुर है यह देखने के लिए
कि कब मां का एक पुत्र
बारूद में बदलकर दूसरे के सीने में उतर जाता है
देश सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा भर नहीं होता
जो राजा के दौड़ते घोड़ों के टापो से जन्म लेता है
देश लाखों लाख दिलों को अपनी छाती से लगाए
एक जीवित देह होता है
तब भी क्या यह कहने को शेष रह जाता है
कि लहूलुहान दिल के
मृत्यु की नदी में डूब जाने पर
देश जो कि एक जिंदा देह है
उसे लाश बनकर नदी में उतराने से
रोका नहीं जा सकता
इसलिए एक छोटे से भी दिल को
तोड़ देने का मतलब होता है
उतने ही एक छोटे से हिस्से को
हमेशा हमेशा के लिए देश के नक्शे से मिटा देना उनके लिए किसान एक देश नहीं है
वह सिर्फ अन्न और सैनिकों की पौध तैयार करने वाली
किराये की एक सरोगेसी कोख है
जिसे प्रसव के बाद देश के नक्शे में जगह पाने के लिए दो पैरों की नहीं एक रस्सी के फंदे की जरुरत पड़ती है वर्णवाद के कोढ़ से बजबजाती जिस मूर्ति पर तुम राष्ट्रवाद का सुगंधित केसरिया टीका मलकर
उसकी प्राण प्रतिष्ठा करने की कोशिश कर रहे हो इससे उसमें देवत्व का वरण नहीं
दुर्गंध का ही वरण होगा
जब जब धनासुर बकासुर का मुकुट पहनकर धरतीपुत्रों का गर्दन मरोड़ रहा होता है
तब उनके पिलाए छठी के दूध का
कर्ज उतारने के लिए
हे डफालिये तुम उसके ड्योढ़ी पर
झूठी देशभक्ति की मोटी चमड़ी से बनी अपनी डफली और जोर जोर से बजाना शुरु कर देते हो
ताकि उनकी चीख कहीं बाहर निकल कर
जनता के दुश्मनों की गले की तलवार ना बन जाए जंगे आजादी में
जब भारत माता की जय कहने का मतलब
दुश्मनों की गोलियों में
अपने नाम का अंतिम शब्द लिखना होता था
उस समय वे अपनी देसी उॅगलियों से
अंग्रेजी चिलम में जाफरानी खुशबू भर रहे थे
और अब सत्ता की पंजीरी लूटने के लिए
भारत माता के नाम पर
दहशतगर्दी का नया तालिबानी हथियार गढ़ रहे हैं समानता के विरुद्ध समरसता का नकली दूध पिलाने वाले स्वदेशी मिलावटखोर
भगत सिंह के न्याय एवं समानता के विचारों की हत्या कर
शहीद-ए-आजम को भी बुद्ध की तरह
विष्णु का पच्चीसवा अवतार बता कर
अपने हाथों की गढ़ी हुई निर्जीव मूर्तियों में
तब्दील कर देना चाहते हैं
धान के खेतों में पानी में गड़ी
वह जो मांग में सिंदूर की जगह
अपनी भूख को पहने धरती को सुहागिन बना रही है वह कुम्हार जो मिट्टी में पानी की जगह
अपनी देह का सूरज गूॅथ कर
रोशनी के दिए गढ़ रहा है
वह किसान जो जुए के दाएं हिस्से में
बैल और ईश्वर की अनुपस्थिति की परवाह किए बिना बाएं हिस्से को अकेले ही खींच कर
पसीने का रक्तबीज बो रहा है
माटी के माधव तो उनसे माटी की महक मत पूछ
देश भक्ति की बात ना कर
देशभक्ति का मतलब होता है संपूर्ण जनता का
सम्मान एवं समानता हक और न्याय
न कि दम घुटती हवा में तैरती
नपुंसक मिथ्या मैथुन की कल्पकथा
@जुल्मीरामसिंह यादव
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