किसने बनाए ये ऊँचे महल?
किसके पसीने से चमका यह पल?
कौन है जो ज़मीन जोते दिन-रात?
कौन भूखा सोए, कौन भरे अपनी थाली सौगात?
बर्तोल्त ब्रेख्त ने पूछा सवाल,
क्यों इतिहास में गुम मज़दूरों के हाल?
राजा के नाम के क़िस्से लिखे गए,
पर ईंटें रखने वाले कहाँ खो गए?
मज़दूर के हाथों ने दुनिया रची,
पर मालिक ने दौलत की गाथाएँ लिखी।
मशीनें चलीं, पर किसने चलाईं?
सड़कें बनीं, पर किसने बिछाई?
अब ये कहानी बदलनी होगी,
श्रम की ताक़त संभालनी होगी।
मज़दूर उठेगा, हक़ माँगेगा,
इंक़लाब का बिगुल बजेगा!
तुम जो सड़क पर धूल में लथपथ हो,
तुम ही असली दुनिया के रचयिता हो!
अब राजा नहीं, मज़दूर बोलेगा,
शोषण का हर क़िला डोलेगा!
एम के आजाद
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