वो चॉकलेट, फूलों की बातें करते,
हम हथौड़ा, कुदाल पकड़कर चलते।
वो ग़ज़लें, शेर, मोहब्बत गाते,
हम फ़ैक्ट्री में ख़ून-पसीना बहाते।
वैलेंटाइन उनके लिए जश्न का दिन,
हमारे लिए रोटी जुटाने की जंग।
प्यार उनके लिए गुलाबों की सौगात,
हमारे लिए अधूरी मज़दूरी की बात।
महलवालों को इश्क़ की फुर्सत है,
मज़दूर की मोहब्बत मजबूरियों में सिमट गई।
हमने भी चाहा किसी का हाथ पकड़ना,
पर उंगलियाँ औज़ारों की ज़ंजीर में उलझ गईं।
पर सुन लो मालिकों की दुनिया वालो,
मज़दूर का प्यार भी बग़ावत बनता है!
हम भी गुलाब उगाएँगे, अपने हाथों से,
जब खेत, फैक्ट्री, दुनिया अपनी होगी!
उस दिन हमारी मोहब्बत आज़ाद होगी,
कोई भूख से दम न तोड़ेगा।
तब हर दिन वैलेंटाइन होगा,
जहाँ इश्क़ और इंक़लाब साथ खिलेगा!
एम के आज़ाद
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