दरबारे-वतन में जब इक दिन सब जानेवाले जाएंगे,
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा* ले जाएंगे !
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा* ले जाएंगे !
ऐ ख़ाक-नशीनो, उठ बैठो, वह वक़्त क़रीब आ पहुँचा है,
जब तख़्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे !
जब तख़्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे !
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें, अब ज़िन्दानों* की ख़ैर नहीं,
जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे !
जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे !
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं, सर भी बहुत,
चलते भी चलो के अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएंगे !
चलते भी चलो के अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएंगे !
ऐ ज़ुल्म के मातो, लब खोलो, चुप रहनेवालो, चुप कब तक,
कुछ हश्र तो उनसे उठेगा, कुछ दूर तो ना”ले* जाएंगे !
कुछ हश्र तो उनसे उठेगा, कुछ दूर तो ना”ले* जाएंगे !
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