गौहर रज़ा की ''देशद्रोही'' गज़ल
- गौहर रजा
- गौहर रजा
धर्म में लिपटी वतनपरस्ती क्या-क्या स्वांग रचाएगी
मसली कलियाँ, झुलसा गुलशन, ज़र्द ख़िज़ाँ दिखलाएगी
मसली कलियाँ, झुलसा गुलशन, ज़र्द ख़िज़ाँ दिखलाएगी
यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है
खतरा है वह वहशत मेरे मुल्क में आग लगायेगी
खतरा है वह वहशत मेरे मुल्क में आग लगायेगी
जर्मन गैसकदों से अबतक खून की बदबू आती है
अंधी वतनपरस्ती हमको उस रस्ते ले जायेगी
अंधी वतनपरस्ती हमको उस रस्ते ले जायेगी
अंधे कुएं में झूठ की नाव तेज़ चली थी मान लिया
लेकिन बाहर रौशन दुनियां तुम से सच बुलवायेगी
लेकिन बाहर रौशन दुनियां तुम से सच बुलवायेगी
नफ़रत में जो पले बढ़े हैं, नफ़रत में जो खेले हैं
नफ़रत देखो आगे-आगे उनसे क्या करवायेगी
नफ़रत देखो आगे-आगे उनसे क्या करवायेगी
फनकारो से पूछ रहे हो क्यों लौटाए हैं सम्मान
पूछो, कितने चुप बैठे हैं, शर्म उन्हें कब आयेगी
पूछो, कितने चुप बैठे हैं, शर्म उन्हें कब आयेगी
यह मत खाओ, वह मत पहनो, इश्क़ तो बिलकुल करना मत
देशद्रोह की छाप तुम्हारे ऊपर भी लग जायेगी
देशद्रोह की छाप तुम्हारे ऊपर भी लग जायेगी
यह मत भूलो अगली नस्लें रौशन शोला होती हैं
आग कुरेदोगे, चिंगारी दामन तक तो आएगी।
आग कुरेदोगे, चिंगारी दामन तक तो आएगी।
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