कविता - वो लोग
वो लोग जो डरते है गर्मी उमस भरे दिनों से
वो लोग जिन्हे रातों में जागना नहीं आता
जो मिट्टी में बिमार करने वाले किटाणुओं की बात करते है
और जिनके लिए पसीना हमेशा बदबू भरा रहा है
वो लोग जिन्हे रातों में जागना नहीं आता
जो मिट्टी में बिमार करने वाले किटाणुओं की बात करते है
और जिनके लिए पसीना हमेशा बदबू भरा रहा है
वो लोग जो कहते है तरक्की बस तरक्की
किसी भी किमत पर
जो नोट की लम्बाई से मापते है जिंदगी का कद
जो हमेशा से ही करते रहे है ईस्तमाल
हमारे हाथों को हमारे ही खिलाफ
जिन्होने कविता के पैर में डाल दी है
अपने पुरस्कारों कि चमकती बेडीयां
किसी भी किमत पर
जो नोट की लम्बाई से मापते है जिंदगी का कद
जो हमेशा से ही करते रहे है ईस्तमाल
हमारे हाथों को हमारे ही खिलाफ
जिन्होने कविता के पैर में डाल दी है
अपने पुरस्कारों कि चमकती बेडीयां
वो लोग जिन्होने नहीं देखें है
हमारे बच्चों के ज़रद पीले चेहरे
जो नहीं जानते है घरों को उसारना
जिनके पास हमारी भूख को छोडकर
हर चीज का इलाज है
जिनके पास खाने के लिए हमारे हाथ
और पीने के लिए है हमारा लहू
हमारे बच्चों के ज़रद पीले चेहरे
जो नहीं जानते है घरों को उसारना
जिनके पास हमारी भूख को छोडकर
हर चीज का इलाज है
जिनके पास खाने के लिए हमारे हाथ
और पीने के लिए है हमारा लहू
वो लोग जो रहते है
हमारी कब्रों पर रोशन महलों में
वो लोग जिनके पेट की चरबी
हमारी हड्डीयों से छीलते हुए मांस की गवाह है
वो लोग जो हमारी सूखी सख्त छातीयों पर
बिछाते है रेल-पट्टरीयों का जाल
हमारी कब्रों पर रोशन महलों में
वो लोग जिनके पेट की चरबी
हमारी हड्डीयों से छीलते हुए मांस की गवाह है
वो लोग जो हमारी सूखी सख्त छातीयों पर
बिछाते है रेल-पट्टरीयों का जाल
वो लोग जिनका सुनहरा भविष्य टिका है
हमारे वर्तमान के अंधकार पर
वो लोग हमें ज़िदां रखने के लिए
बस हमें मरने नहीं देंगे
हमारे वर्तमान के अंधकार पर
वो लोग हमें ज़िदां रखने के लिए
बस हमें मरने नहीं देंगे
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