Sunday, January 22, 2017

साहिर लुधियानवी की मशहूर नज़्म का दूसरा वर्ज़न जो "धर्मपुत्र" फ़िल्म में था

धरती की सुलगती छाती के
बैचेन शरारे पूछते हैं
तुम लोग जिन्हे अपना न सके,
वो खून के धारे पूछते हैं
सड़कों की जुबान चिल्लाती है
सागर के किनारे पूछते हैं -
ये किसका लहू है कौन मरा
ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा.
ये जलते हुए घर किसके हैं
 ये कटते हुए तन किसके है,
तकसीम के अंधे तूफ़ान में
लुटते हुए गुलशन किसके हैं,
बदबख्त फिजायें किसकी हैं
बरबाद नशेमन किसके हैं,
कुछ हम भी सुने, हमको भी सुना.
ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा
किस काम के हैं ये दीन धरम
जो शर्म के दामन चाक करें,
किस तरह के हैं ये देश भगत
जो बसते घरों को खाक करें,
ये रूहें कैसी रूहें हैं
जो धरती को नापाक करें,
आँखे तो उठा, नज़रें तो मिला.
ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा
जिस राम के नाम पे खून बहे
उस राम की इज्जत क्या होगी,
जिस दीन के हाथों लाज लूटे
उस दीन की कीमत क्या होगी,
इन्सान की इस जिल्लत से परे
शैतान की जिल्लत क्या होगी,
ये वेद हटा, कुरआन हटा
ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा.
- साहिर लुधियानवी की मशहूर नज़्म का दूसरा वर्ज़न जो "धर्मपुत्र" फ़िल्म में था

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