जब फुर्सत मिले, तो मुझसे बात करना,
पर सिर्फ़ इश्क़ नहीं, इंक़लाब की बात करना।
जब दुनिया की ज़ंजीरें तुम्हें कसने लगें,
तो मज़दूरों के हक़ की बात करना।
मेरे हाथों की लकीरों में मेहनत की धूल है,
पर इन्हीं में छुपे हैं सपने बराबरी के।
मैं फैक्ट्री की मशीनों में उलझा हूँ,
पर मेरा दिल अब भी आज़ादी की धड़कन है।
धुआँ उगलती चिमनियों के बीच भी,
तेरी मुस्कान बग़ावत की लौ जलाती है।
मैं मज़दूर हूँ, मेरा इश्क़ भी संघर्ष की तरह बहता है,
न कोई शानो-शौकत, न महंगे तोहफ़े,
बस हथेलियों की दरारों में
इंक़लाब की एक नई दुनिया सजाने का सपना है।
जहाँ इश्क़ अमीरों की जागीर न हो,
जहाँ हर हाथ को रोटी और हर दिल को सुकून मिले।
जहाँ तुम भी खुली हवा में साँस ले सको,
जहाँ मेरा इश्क़ और मेरी क्रांति, दोनों मुकम्मल हों!
*एम के आज़ाद*
No comments:
Post a Comment